कवि: आरती प्रसाद सिंह
क) यह जीवन क्या है ? ………………………………. समतल में अपने को खींचे |
१) प्रस्तुत पद्य खंड किस कविता से लिया गया है ? कवि का परिचय दो |
उत्तर: प्रस्तुत पद्य खंड ‘जीवन का झरना’ नामक कविता से लिया गया है | इसके कवि श्री आरती प्रसाद सिंह है | इन्होंने द्विवेदी युग में काव्य लेखन प्रारंभ कर दिया था और छायावादी युग में इनकी रचनाएँ प्रकाश में आने लगी | छायावादी कवियों की भाँती इन्होनें प्रकृति और जीवन की विविध प्रवृत्तियों का अत्यंत सरल, सुगम व मधुर चित्रण किया है | इनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं ‘कलापी’, ‘संचयिता’, ‘जीवन और यौवन’, ‘पांचजन्य’ |
२) कवि जीवन को निर्झर क्यों कहता है ?
उत्तर: निर्झर प्रतीक है गति का | वह अपने दो किनारों के बीच लगातार आगे बढ़ता जाता है | कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता | मनुष्य का जीवन भी वैसा ही है | सुख-दुख के दो किनारों के बीच यह आगे बढ़ता जाता है | बीते हुए जीवन का हिस्सा कभी लौटकर वापस नहीं आता | इसलिए कवि जीवन को निर्झर कहता है |
३) कवि निर्झर से क्या प्रश्न कर रहा है ?
उत्तर: कवि निर्झर से पूछ रहा है कि किस पर्वत से फूटकर उसका जन्म हुआ है ? किन चोटियों से वह नीचे उतरा है ? किन घाटियों से वह बह के आया है? तथा किन समतल मैंदानों को उसने अपने जल से सींचा है ?
४) “सुख-दुख के दोनों तीरों से” कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: मनुष्य का जीवन लगातार बढ़ता जाता है | जीवन में कभी सुख आता है तो कभी दुख | न सुख हमेशा के लिए टिकता है न दुख | मनुष्य का जीवन दोनों को भोगते हुए बीतता जाता है | इसलिए कवि कह रहे हैं कि मनुष्य का जीवन एक ऐसा झरना है जो सुख तथा दुख के तीरों के बीच बहता जाता है |
ख) निर्झर में गति है, यौवन है ………………………. चलता यौवन से मदमाता |
१) निर्झर को किस बात की धुन है ?
उत्तर: निर्झर में गती है | यौवन का जोश है | वह रुकना नहीं जानता | वह अपनी मस्ती में गाता हुआ लगातार आगे बढ़ता जाता है | उसे सिर्फ चलने की धुन है | वह राह में आनेवाली हर बाधा को दूर करते हुए चलता जाता है |
२) निर्झर के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं ?
उत्तर: निर्झर पहाड़ के गर्भ से निकलता है | उसे बाहर निकलते ही कठोर चट्टानों को पार करना पड़ता है | उन्हें पार करने के बाद भी मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं | उसे वनों को पार करना पड़ता है | पेड़ों से टकराना पड़ता है | चट्टानों पर चढ़ना पड़ता है | इस प्रकार अपने उद्गम से निकल कर समुद्र में समाने तक निर्झर को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है |
३) निर्झर किस प्रकार आगे बढ़ता जाता है ?
उत्तर: निर्झर में गति होती है | वह लगातार आगे बढ़ता जाता है | अपने राह में आनेवाली हर रुकावट से वो प्रचंड वेग से टकराता है तथा उस रुकावट को दूर कर देता है | पत्थरों को तोड़ता, वन के पेड़ों से टकराता, चट्टानों पर चढते हुए वह आगे बढ़ता जाता है |
४) निर्झर के बाधाओं से लड़ने के गुण से हम क्या सीख सकते हैं ?
उत्तर: निर्झर के राह में चाहे कितनी ही रुकावटें आयें, वो कभी नहीं रुकता | वह उन रुकावटों को दूर करता हुआ आगे बढ़ता जाता है | ऐसे ही मनुष्य को भी अपने जीवन में अनेक बाधाएँ मिलेंगी | मनुष्य को उन बाधाओं से हार न मानते हुए लड़ना चाहिए | उन बाधाओं को दूर करके अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाना चाहिए |
ग) लहरें उठती है, गिरती हैं ………………………………. जग-दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन |
१) नाविक कब तट पर बैठ कर पछताता है ?
उत्तर: जब समुद्र, नदी या झरने का पानी शाँत हो तो उस समय नाविक के लिए नाव चलाना आसान होता है | लेकिन जब उनमें बड़ी-बड़ी लहरें हो तो किसी भी नाविक के लिए नाव चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है | इसलिए जब लहरें उठ रही हों, गिर रही हों तो नाविक तट पर बैठ कर पछताता है |
२) पछताने वाले नाविक का उदाहरण देकर कवि हमें क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर: निर्झर में लहरें उठती-गिरती रहती हैं | उन लहरों से डरकर जो नाविक किनारे पर बैठा रहता है, उसे कोई लाभ नहीं होता व पछताना पड़ता है | उसी तरह मनुष्य के जीवन में भी अनेक संकटरूपी लहरें आती रहती हैं | मनुष्य यदि संकटों से डरकर प्रयत्न करना छोड़ दे तो वो जीवन में कभी प्रगति नहीं कर पायेगा, हमेशा पछताता रहेगा | कवि नाविक के उदाहरण द्वारा हमें उन संकटों को चुनौती के रूप में स्वीकार कर उनका सामना करने का संदेश दे रहे हैं |
३) मानव कब मर जाएगा ?
उत्तर: मनुष्य का जीवन एक झरने की तरह होता है | झरना जब तक आगे बढ़ता रहता है, तभी तक उसका जीवन है | जैसे ही उसका पानी एक जगह रुक जाता है, वहाँ वो झरना समाप्त हो जाता है | मनुष्य का जीवन भी ऐसा ही है | जब तक मनुष्य जीवन में संघर्ष करते रहता है, प्रगति पथ पर बढ़ते रहता है तब तक ही वो वास्तव में मनुष्य है | जिस दिन उसने आगे बढ़ना छोड़ दिया, उस दिन से वह एक मृत व्यक्ति की तरह हो जाता है |
४) कवि ने निर्झर की गति को उसका जीवन क्यों कहा है ?
उत्तर: निर्झर जब तक बहता जाता है तब तक ही वो निर्झर कहलाता है | जिस स्थान पर जाकर निर्झर बहना छोड़ देता है, वहाँ वो समाप्त हो जाता है | फिर उसे निर्झर नहीं कहा जाता | उसकी स्थिति एक तालाब जैसी हो जाती है, जो बँधा हुआ होता है | इसलिए कवि निर्झर की गति को उसका जीवन कहते हैं |
घ) निर्झर कहता है ………………………. निर्झर यह झरकर कहता है |
१) निर्झर मनुष्य को क्या प्रेरणा दे रहा है ?
उत्तर: निर्झर कह रहा है कि मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए, पीछे मुड़कर देखने का कोई लाभ नहीं है | हमारे जीवन में भूतकाल में जो हुआ है, यदि हम उसके बारे में ही सोचते रहेंगे तो हम अपने भविष्य के लिए योजना नहीं बना पायेंगे | इसलिए जो बीत गया उसे भूलकर आगे बढ़ते जाना चाहिए |
२) यौवन हमें क्या कह रहा है ?
उत्तर: यौवन जोश का नाम है | वह परिणाम की चिंता नहीं करता | कई बार मनुष्य परिणाम की चिंता में इतना व्यस्त रहता है कि वो उसकी प्रगति के लिए जो कार्य जरुरी है, वो भी नहीं करता | यौवन मनुष्य को कह रहा है कि वो परिणाम की चिंता न करे बल्कि आगे बढ़ते जाये | जो काम करना है उसे पूरे जोश से करे | आगे जाकर क्या होगा, उसके बारे में अभी सोचने की जरुरत नहीं है |
३) निर्झर मनुष्य को झरकर क्या कहता है ?
उत्तर: निर्झर मनुष्य को कह रहा है कि अपनी मंजिल को पाने के लिए निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए | ये गति ही जीवन की निशानी है | मार्ग में चाहे जितनी भी बाधाएँ आयें, उन सबसे संघर्ष करते हुए मनुष्य को चलते रहना चाहिए | जिस दिन मनुष्य ने आगे बढ़ना छोड़ दिया, उस दिन जीवित होते हुए भी वह मृत के समान है |
४) रुक जाना मरने के समान क्यों है ?
उत्तर: जीवन का दूसरा नाम गति है | मनुष्य को सतत आगे बढ़ते रहने का प्रयत्न करते रहना चाहिए | उसके इसी प्रयत्न पर उसकी तथा समाज की प्रगति टिकी है | मुसीबतों से टकराते हुए अपनी मंजिल को पाना ही वास्तव में जीवन है | जो व्यक्ति इन मुसीबतों से डरकर संघर्ष नहीं करता, व हार मान कर बैठ जाता है, उसकी प्रगति भी उसी क्षण रुक जाती है | ऐसा ब्यक्ति मरे हुए के समान ही है | इसलिए जीवन में रुकना मरने के समान है |
केंद्रीय भाव :
कवि आरसी प्रसाद सिंह प्रस्तुत कविता में मनुष्य को झरने से प्रेरणा लेने को कह रहे हैं | जिस तरह झरना अपने जीवन में कहीं नहीं रुकता | आगे बढ़ता जाता है | रास्ते में जितनी भी रूकावटे आयें, वो उन्हें दूर करते जाता है | उसी तरह मनुष्य को भी जीवन में चलते रहना चाहिए | अपने जीवन में ऊँचे से ऊँचा लक्ष्य बनाकर, उस लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहना चाहिए | यदि लक्ष्य पूरा होने में कोई बाधा आये, तो पूरी शक्ति से संघर्ष कर उस बाधा को दूर करना चाहिए | किसी भी परिस्थिति में न रुकने वाला व अपनी मंजिल को पानेवाला व्यक्ति ही वास्तविक अर्थों में जीवित है |
अतिरक्त प्रश्न
१) मनुष्य को अपनी उपलब्धिओं से संतुष्ट न होकर जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए लगातार प्रयत्न करते रहना चाहिए | इसपर अपने विचार स्पष्ट करें | अथवा
मानव जीवन की सार्थकता झरने के समान गतिशील बने रहने और बाधाओं का डटकर मुकाबला करने में ही होती है | प्रस्तुत पंक्ति के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए | (ICSE 2012)
उत्तर: मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए लगातार प्रयत्न करते रहना चाहिए | जो अपनी उपलब्धिओं से संतुष्ट होकर रुक जाता है | उसकी प्रगति वहीं समाप्त | जिस तरह आगे बढ़ती जानेवाली नदियों का पानी स्वच्छ रहता है किंतु एक स्थान पर रुके हुए तालाब का पानी सड़ने लगता है | मनुष्य का जीवन भी वैसा ही होता है | जब तक वह नई चुनौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ता जाता है, बाधाओं का डटकर मुकाबला करता जाता है, तब तक उसमें नए – नए गुणों का विकास होता रहता है | जैसे ही वह रुक जाता है, उसमें कई अवगुण आ जाते हैं | उसकी प्रगति कुंद हो जाती है | इसलिए मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए |
Tnx sir…. can u write an article on neki bani bdi story by premchand questions and answers as u wrote on this poem….
यह जीवन क्या है? निर्झर है
मस्ती ही इसका पानी है
सुख -दूःख के दोनो तीरो से
चल रहा मनमानी है…………….
……..अंतर स्पस्ट करे
Yeh jivan nirjhar ki trah hai josh hi insan ko pargati karta hai Aj shukh hai to kal dukh hai lekin insan ko manmani ki rah sukh or dukh dono ke sath badhte jana hai chahye tufan Aaye ya patthar takraye bas chalte jana hai bas chalte jana hai