भारत जैसे कृषिप्रधान देश में किसानों की आत्महत्या एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है | इसके कारणों का विवरण देते हुए समस्या की गंभीरता को स्पष्ट कीजिये |
भारत में किसान आत्महत्या १९९० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के द्वारा आत्महत्या करने की रिपोर्ट दर्ज की गई है | १९९५ से २०११ के बीच १७ वर्ष में ७ लाख, ५० हजार, ८६० किसानों ने आत्महत्या की है | भारत में धनी और विकसित कहे जाने वाले महाराष्ट्र में अब तक आत्महत्याओं का आंकड़ा ५० हजार से ऊपर पहुँच चुका है |
किसानों द्वारा नियमित आत्महत्याओं की सूचना सबसे पहले अंग्रेजी अखबार द हिंदू के ग्रामीण मामलों के संवाददाता पी. साईंनाथ ने १९९० ई. में छापी | आरंभ में ये खबरें महाराष्ट्र से आईं | शुरुआत में लगा की अधिकांश आत्महत्याएं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कपास उत्पादक किसानों ने की है | लेकिन महाराष्ट्र के राज्य अपराध लेखा कार्ययालय से प्राप्त आंकड़ों को देखने से स्पष्ट हो गया कि पूरे महाराष्ट्र में कपास सहित अन्य नकदी फसलों के किसानों की आत्महत्याओं की दर बहुत अधिक रही है | आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जोत वाले किसान नहीं थे बल्कि मध्यम और बड़े जोतों वाले किसानों भी थे | राज्य सरकारों ने इस समस्या पर विचार करने के लिए कई जाँच समितियाँ बनाईं | भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विदर्भ के किसानों की सहायता के लिए राज्य सरकार को ११० अरब रूपए के अनुदान की घोषणा की | लेकिन यह समस्या महाराष्ट्र तक ही नहीं रुकी | बाद के वर्षों में कृषि संकट के कारण कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी किसानों ने आत्महत्याएं की | इस दृष्टि से २००९ अब तक का सबसे खराब वर्ष था जब भारत के राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय ने सर्वाधिक १७,३६८ किसानों के आत्महत्या की रपटें दर्ज की | सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई थी |
भारत के ज्यादातर छोटे किसान कर्ज लेकर खेती करते हैं | कर्ज वापस करने के लिए यह जरुरी है कि फसल अच्छी हो | हमारे देश में सिंचाई की सुविधा बहुत कम किसानों को उपलब्ध है | ज्यादातर किसान खेती के लिए वर्षा पर निर्भर रहते हैं | अब ऐसे में यदि मानसून ठीक से न बरसे तो फसल पूरी तरह बरबाद हो जाती है | किसान की सारी मेहनत बरबाद हो जाती है | वर्ष भर खाने के लिए भी कुछ नहीं रहता, साथ में कर्ज चुकाने का बोझ अलग | मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियाँ किसानों के लिए समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं | ऐसी परिस्थितियों में वे बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँस जाते हैं | कई किसान कर्ज के दबाव को सह नहीं पाते और आत्महत्या कर लेते हैं |
किसानों के लिए खेती का खर्च लगातार बढ़ रहा है लेकिन किसान की आमदनी कम हुई है | छोटे किसान आर्थिक तंगहाली की सूरत में कर्ज के दुष्चक्र में पड़े है | किसानों का समर्थन कर रहे समूहों का कहना है कि अनाज की वास्तविक कीमतें किसानों को नहीं मिलती और उन्हें जीएम कंपनियों से कपास के काफी महंगे बीज और खाद खरीदने होते हैं | इन समूहों के मुताबिक जीएम बीज को खरीदने में कई किसान गहरे कर्ज में डूब जाते हैं | जब फसल की सही कीमत नहीं मिलती है तो उन्हें आत्महत्या कर लेना एकमात्र विकल्प नजर आता है |
किसान की आत्महत्या के बाद पूरा परिवार उसके असर में आ जाता है | बच्चे स्कूल छोड़कर खेती-बाड़ी के कामों में हाथ बँटाने लगते हैं | परिवार को कर्ज की विरासत मिलती है और इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि बढ़े हुए पारिवारिक दबाव के बीच परिवार के कुछ अन्य सदस्य कहीं आत्महत्या ना कर बैठें |
किसान हमारे अन्नदाता है | उनकी आत्महत्या पूरे राष्ट्र के लिए शर्म की बात है | देश की केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए युद्धस्तर पर प्रयत्न करने की आवश्यकता है | भारत जैसे कृषिप्रधान देश में यदि किसानों की ऐसी अवस्था हो तो हमारी प्रगति और विकास की सारी बातें, हमारी सारी उपलब्धियाँ अर्थहीन हैं | देश के अर्थशास्त्रियों, देश की सरकार को सबसे पहले इसी पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना चाहिए |
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